Behold, what love, what boundless love,

Behold, what love, what boundless love,
The Father hath bestowed
On sinners lost, that we should be
Now called “the sons of God!”

Behold, what manner of love!
What manner of love the Father hath bestowed upon us,
That we, that we should be called,
Should be called the sons of God!
No longer far from Him but now
By “precious blood” made nigh,
Accepted in the “Well beloved,”
Near to God’s heart we lie.

What we in glory soon shall be,
It doth not yet appear;
But when our precious Lord we see,
We shall His image bear.

With such a blessèd hope in view,
We would more holy be,
More like our risen, glorious Lord,
Whose face we soon shall see.

BACK TO INDEX

देखो, कैसा प्रेम, क्या असीम प्रेम,
पिता ने दी है
पापियों के खो जाने पर, कि हमें होना चाहिए
अब कहा जाता है “परमेश्वर के पुत्र!”

देखो, कैसा प्रेम है!
पिता ने हम पर कैसा प्रेम किया है,
कि हम, कि हमें बुलाया जाना चाहिए,
भगवान के पुत्र कहा जाना चाहिए!
अब उससे दूर नहीं लेकिन अब
“कीमती लहू” के क़रीब बना दिया,
“अच्छी तरह से प्रिय,” में स्वीकृत
भगवान के दिल के पास हम झूठ बोलते हैं।

हम जल्द ही महिमा में होंगे,
यह अभी तक प्रकट नहीं हुआ है;
परन्तु जब हमारा बहुमूल्य प्रभु हम देखते हैं,
हम उनकी छवि धारण करेंगे।

ऐसी धन्य आशा को ध्यान में रखते हुए,
हम अधिक पवित्र होंगे,
हमारे जी उठने की तरह, गौरवशाली भगवान,
जिसका चेहरा हम जल्द ही देखेंगे।

BACK TO INDEX

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *