His oceans all rumble and batter His shore,
But He will be new when its waves are no more.
His mountains reach skyward to touch His sweet face;
His forests burst forth as He showers their place.
The mighty Leviathan leaps in His seas,
The eagle mounts up on the joy of His breeze.
The creatures of earth borrow life from His hand,
Their days are all numbered by His firm command.
Eternity springs from His Infinite Mind—
All time and all space from His fingers unwind,
His intricate, limitless, unbounded skill
Spins threads of His sovereign, inscrutable will.
The thunder of Sinai resounds in our ears,
The judgment of God stirs the deepest of fears!
But, awesome and wondrous—more staggering still—
The flashes of lightning from Calvary’s hill!
But O! How mighty, how perfect, how free,
How blessèd, how precious, how lovely is He!
And O! How grand, and how sweet to behold
The trophies of grace He has won from of old!
A radiant triumph illumines His face!
He strides to His throne, the Colossus of Grace!
He sits, and His Father proclaims Him True Son!
His strife is now over; His battle is done.
We bow, we adore, we fall down at His throne,
He gathers us into His arms as His own!
He seats us in glory beside Him above,
To crown His achievement with splendors of love!
उसके सभी महासागर गड़गड़ाहट करते हैं और उसके तट को पीटते हैं,
लेकिन वह नया होगा जब उसकी लहरें नहीं रहेंगी।
उसके मधुर मुख को स्पर्श करने के लिए उसके पर्वत आकाश की ओर पहुंचते हैं;
जैसे ही वह उनके स्थान पर वर्षा करता है, उसके जंगल फूट पड़ते हैं।
पराक्रमी लेविथान अपने समुद्र में छलांग लगाता है,
चील अपनी हवा की खुशी पर चढ़ जाती है।
पृथ्वी के जीव उसके हाथ से जीवन उधार लेते हैं,
उनकी दृढ़ आज्ञा से उनके दिन गिने जाते हैं।
उनके अनंत मन से अनंत काल का उद्गम होता है-
उसकी उंगलियों से सारा समय और सारा स्थान खुल जाता है,
उनका जटिल, असीम, असीम कौशल
उनकी संप्रभु, अचूक इच्छा के धागे पिरोते हैं।
सिनाई की गड़गड़ाहट हमारे कानों में गूँजती है,
परमेश्वर का न्याय सबसे गहरे भय को भड़काता है!
लेकिन, भयानक और चमत्कारिक – और भी चौंका देने वाला –
कलवारी की पहाड़ी से बिजली की चमक!
लेकिन हे! कितना शक्तिशाली, कितना परिपूर्ण, कितना मुक्त,
वह कितना धन्य, कितना अनमोल, कितना प्यारा है!
और हे! देखने में कितना भव्य, और कितना प्यारा
अनुग्रह की ट्राफियां उसने पुराने समय से जीती हैं!
एक उज्ज्वल विजय उनके चेहरे को रोशन करती है!
वह अपने सिंहासन, अनुग्रह के बादशाह की ओर बढ़ता है!
वह बैठता है, और उसका पिता उसे सच्चा पुत्र घोषित करता है!
उसका झगड़ा अब खत्म हो गया है; उसकी लड़ाई हो चुकी है।
हम झुकते हैं, हम पूजा करते हैं, हम उसके सिंहासन पर गिरते हैं,
वह हमें अपनी बाहों में समेट लेता है!
वह हमें महिमा में ऊपर अपने पास बैठाता है,
प्रेम के वैभव के साथ उनकी उपलब्धि का ताज पहनाने के लिए!